मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया;
तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया;
कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख्तसर मगर;
कुछ यूँ बसर हुई कि खुदा याद आ गया।
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